तुम किसी झील का मीठा पानी……
आच्छादित वन से घिरी हुई,
तुम किसी झील का मीठा पानी ।
मैं कोई आसान इबारत,
तुम हो कोई लिखी कहानी।
मैं साधारण सा प्रेमी,
तुम प्रेम नगर की माया हो ।
मैं कड़ी धूप में चला मुसाफिर,
तुम ठंडी तरुछाया हो ।।
कर दे मालामाल मुझे,
बनकर प्रेमरत्न की दानी।
अच्छादित वन से घिरी हुई,
तुम किसी झील का मीठा पानी ।।
मैं मेले का शोर शराबा ,
तुम सुबह के मन्दिर का हो भजन।
मैं ढूढ़ रहा हूँ जो आश्रय ,
तुम हो वही वशुधा पावन ।।
आहट तेरी करती है सरल,
हो राहें जितनी अनजानी ।
आच्छादित वन से घिरी हुई ,
तुम किसी झील का मीठा पानी ।।
✍️ कैलाश सिंह