तुम्हें रूठना आता है मैं मनाना सीख लूँगा,
तुम्हें रूठना आता है मैं मनाना सीख लूँगा,
तुम भिगाओ जो सावन सी, मैं उम्र भर भीग लूँगा,
मैं थोड़ा कच्चा हूँ, प्यार का विद्यार्थी ठहरा,
तुम्हारा साथ पा जाऊँ, तो सारी दुनिया जीत लूँगा।
सफर लंबा है थोड़ा, बात करते रहना जरूरी है,
मेरी सांसे है तुमसे, चलते रहने को मिलना जरूरी है,
मुरादें इतनी थी कि मांगते चौखट घिस देता मैं,
खुदा तुमको ही दे दे बस, बाकी गिरवी दे दूंगा।
क्या बचपन क्या जवानी क्या बुढापा हो,
अगर तुम ही नहीं होगे तो जीने का मज़ा क्या हो,
जानता हूँ नसीब अपना ‘जरा कुछ’ ही भरा लाया,
तुम्हारा ‘कुछ’ जो जुड़ जाए तो बाकी सब सृजित लूँगा।।