तुम्हीं सदगुरु तारणहार
प्रातःकाल स्मरण करता,
श्रीचरणों मैं नित पड़ता।
युक्ति मुक्ति दे सदगुरु जी,
ह्रदय से मैं विनती करता।।
कुल रक्षक श्रीविष्णु एक,
सदगुरु आप कर्या अनेक।
मेहर सदा श्रीजम्भगुरु की,
है सदगुरु नित राखी टेक।।
करूं रचना नित भावों से,
जपन श्रीविष्णु लगाव से।
दुर्बुद्धि हरै श्रीसदगुरु देव,
करै कवि के वे हर काम।।
तुम्हीं सदगुरु तारणहार,
पृथ्वीसिंह’ के राखणहार।
श्रीजम्भगुरु सील राखणों,
सब काम सारै पालनहार।।