तुम्हारे लफ्ज
तुम्हारे लफ्ज और आवाजों के ऊँचे डेसिबल
मुझे आज भी चुभते हैं जैसे चुभे थे कभी
मैं वह नहीं रहा न मेरा मिजाज वो रहा
के गलतियां दूजे की भी हो तो झुकते थे कभी
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
तुम्हारे लफ्ज और आवाजों के ऊँचे डेसिबल
मुझे आज भी चुभते हैं जैसे चुभे थे कभी
मैं वह नहीं रहा न मेरा मिजाज वो रहा
के गलतियां दूजे की भी हो तो झुकते थे कभी
-सिद्धार्थ गोरखपुरी