तुम्हारी यादें
ग़ज़ल*याद*
तुम्हारी याद आती है
कसक मन में उठाती है
सुनाकर हाल सब अपना
तरस भर आँख जाती है
भुलावा नींद का देकर
निशा में गुनगुनाती है
सहर से शाम करुणा में
नहा कर मुस्कुराती है
बुलाकर पास में बैठा
जुबां से पीर गाती है
भरी महफिल रुला आँखें
मुझे तनहा बनाती है
पिता अम्मा सदन दुनिया
भुला दिल को सताती है
कहाँ मैं भाग कर जाऊँ
क़मर से बाँध लाती है
उठा कर दर्द जेहन में
मिलन आशा बढ़ाती है
सुगंधित इत्र सी महके
हवा सी सरसराती है
सुधा अब तो समझ लो ना
सभी को प्रीति भाती है
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
24/9/2022
वाराणसी,©®