तुम्हारी नज़रों से
तुम्हारी नज़रों से
मेरे जीवन की इस सूनी बगिया में,
मधुरस की बौछार तुम्हारी नज़रों से।
तेरे अधरों के कंपन की गुंजन से,
हिले हृदय के तार तुम्हारी नज़रों से।
तुमको देखा है जबसे इस आँगन में,
खिल गये सदाबहार तुम्हारी नज़रों से।
यादों में तेरी हम जागे रातों को,
पर न हुआ अभिसार तुम्हारी नज़रों से।
सपनों में देखा था तुमको जी भर के,
हो न सका दीदार तुम्हारी नज़रों से ।
कसमें वादे सात जनम के फेरों के ,
पर न हुआ ऐतबार तुम्हारी नज़रों से।
सूने पनघट में घन घट को देख रहा,
पपिहा रहा पुकार तुम्हारी नज़रों से।
महके सुर्ख गुलाब हृदय की बगिया में,
जबसे हुआ है प्यार तुम्हारी नज़रों से।
इस बसंत के मौसम में अब आन मिलो,
करो न बस मनुहार तुम्हारी नज़रों से ।
हो मधुमय मधुमास मधुर मधुरिम ऐसा,
बरसे प्रणय फुहार तुम्हारी नज़रों से ।
प्रकाश चंद्र , लखनऊ
(M) : 8115979002