तुम्हारी आदत
मैं आज भी तुम्हें लिख रहा हूँ
तुम्हारा मुस्कुराना और तुम्हारी जुल्फों का बार बार तुम्हारे चेहरे पर आकर मेरा उन्हें हटाना, तुम्हें परेशान करना मुझे आज भी पसंद हैl
पर मेरी हर पसंद को न पसंद करना आदत थी तुम्हारी, खैर तुम थी ही चिड़चिड़ी , गुस्सा होना जैसे तुम्हारे खून में ही हो, पर जैसी भी थी तुम्हारे चेहरे की मासूमियत मुझे मोह ही लेती थी, तुम्हे मुझसे कई सवाल थे । पर मैं उन सवालों के जवाब कभी दे ही नहीं पाया , शायद तुम्हे खोने के डर से , तुम्हारे गुस्से में लिए गए हर फैसले से डरता था मैं , ओर मेरा डरना भी वाजिब ही था , ना जाने कितने फैसले जो गुस्से मे लिए गए, कितने गलत थे ,
तुम्हारी आदतों को पसंद करना चाहत थी मेरी , और तुम्हारी चाहत कभी तुमने जाहिर ही नहीं की, तुम्हारे संग बिताई हर याद को मैने तुम्हारे दिए गए फाउंटेन पेन से इस डायरी में संजोया है , प्रिय पत्नी अब मेरी इस डायरी में हो तुम। हर रोज़ मैं बालकनी में बैठ तुम्हारी पसंदीदा काफी के साथ एक याद को लिखता हूं । मैं हर रोज़ तुम्हे लिखता हूं।