तुम्हारा आना
तुम साधिकार
जब आते हो
अनायास
अंतस पटल पर
खिल जाते हैं अनंत प्रसून
स्मरण कराते
सदियों की आत्मीयता का
जब भी तुम करीब होते हो
सृजित होते हैं अनंत संसार
जिनमें अक्सर इंद्रधनुषी रंग
उसे सतरंगी बना देते हैं
आंखों की कोर पर टिकी
सौंदर्य की पराकाष्ठा
चित्रकार ठगा सा रह जाता है
जब तुम्हें अपनी तूलिका से
कैनवस पर उकेरने के उपरांत
हो जाता है हतप्रभ
हो जाता है आश्चर्य से चकित
क्योंकि
अब तक तुम
कई गुना और भव्य सौंदर्य से
युक्त हो जाते हो
तुम अभी भोर का सिंदूर बने थे
फिर पावन दिवस तुम्हारा
निशा निमंत्रण , फिर घोर अंधेरा
तप कर , कट कर बीती रजनी
ओढ़ सिंदूरी , जागा जग
फिर हुआ सवेरा
चांद सितारों की चुनरी ले
बाँटे सबको स्वप्न मनोहर
बलखाती फिर नदिया तुम
लिए समेटे सबको साथ
तुमसे ही है जगती सारी
तुम से ही मोहक संसार
नदिया ! अपना नाम मिटा कर
हो जाते तुम पारावार
चित्रकार का चित्र बनाना
कैसे फिर संभव हो पाता
पल में होते तुम सजल मेघ ,
पल में तुम बहती जलधार।।