तुमने सुनना ही कब हमें चाहा,
तुमने सुनना ही कब हमें चाहा,
हमने आवाज़ दे के देखा है।”
शिद्धतों का खुमार है शायद,
अक्स तेरा जो खुद में देखा है।”
” याद रब को भी कर लिया कीजे।
इतने मसरूफ़ मत रहा कीजे।”
“दिल को यूं भी सुकून देते हैं।
तेरी तस्वीर देख लेते हैं।”
“लग के छूटी न कभी हम से,
‘हां’ मेरी तुम वो आदत हो।”
“अपनी मर्ज़ी की कर ले अब दुनिया,
हमने ख़्वाबों को देखना छोड़ा।”
“इब्तिदा से हमें नहीं मतलब,
आखिरी फैसला सुना दीजे ।”
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद