तुमने की दग़ा – इत्तिहाम हमारे नाम कर दिया
ख़ियाबां हमारा
काँटों से भर दिया तुमने
की तुमने दग़ा हर रिश्तों में
और इत्तिहाम
हमारे नाम कर दिया
यह भी जान ले
बहुत अनजान है तू
मेरे चश्म-ए-तल्ख के आक़िबत से
ज़रर की ख़लिश होगी इतनी
नसीब होगा नामरना तुम्हें
और जीना मुहाल होगा
……. अतुल “कृष्ण”
ख़ियाबां= पुष्पवाटिका, फूलों की क्यारी
इत्तिहाम= दोष, दोषारोपण
चश्म-ए-तल्ख = आँसू
आक़िबत= परिणाम
ज़रर= घाव, शोक
ख़लिश = चुभन, दर्द