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19 Mar 2024 · 1 min read

तुन्द हवा …..

ये तुंद हवायें …

ये तुंद हवायें
रहम न खाएंगी
वातायन के पटों पर
अपना ज़ोर अजमाएंगी
किसी के रोके से भला
ये कहां रुकती हैं
सब को झुकाती हैं मगर
स्वयं कहाँ झुकती हैं
आजकल की हवाओं का
बड़ा अजीब मिज़ाज है
बेफ़िक्र अंजाम है
बेफ़िक्र ही आगाज़ है
इनको क्या खबर
इनकी गर्द
कितनी संवेदनाओं को
बेमौत ही
मौत के घाट उतार देंगी
इसकी आवारगी
किसी कमरे की दीवार पर
लकड़ी के फ्रेम में टंगी
ज़िंदा सी याद को
ज़मीन पर गिरा सकती है
इक सदी को
इक पल में मिटा सकती है
अपने थपेड़ों से
मिटी हुई ज़िंदगी को
आभासी संवेदना का
यथार्थ दिखा सकती है
ये तुन्द हवा
अपनी चाल से
दुनिया की
हर
चाल
दिखा सकती है

सुशील सरना

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