तुझे पन्नों में उतार कर
तुझे पन्नों में उतार कर
मन की ख्वाहिश पूरी कर लूं,
कसक दबी बरसों से
लिखकर जी हल्का मै कर लूं।
रूह से जुड़े जज्बात मेरे,
चमका अक्षरसे वक्त गुलजार कर लूं।
खोई थी न जाने मैं कब से,
मुलाकात खुद से अब कर लूं।
स्वप्निल संसार से निकल कर
इज़हार खुद से ही कर लूं।
बीच राह में ही लुढ़क पड़ा अश्रु,
ओ, मेरी रचना तुझे बाहों में मैं भर लूं।
मिलन जुलना लगा ही रहता है,
अब इश्क खुद से ही कर लूं।
– सीमा गुप्ता, अलवर राजस्थान