तुझको देखा तो मन बावला हो गया।
तुझको देखा तो मन बावला हो गया।
था जो गोरा बदन सांवला हो गया।
भूख मिट सी गयी प्यास बढ़ने लगी~
आशिकी सर चढ़ी मनचला हो गया।
हम मिले थे कभी, फिर मिलेंगे कभी।
हैं दरक सा गया दिल सिलेंगे कभी।
मन के उपवन में मुर्झा गये जो सुमन~
मन- चमन में वहीं गुल खिलेंगे कभी।
संजीव शुक्ल ‘सचिन’