Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Nov 2019 · 3 min read

तीस हजारी में वकीलों का तांडव

तीस हजारी में वकीलों का तांडव
दिल्ली तीस हजारी कोर्ट में जो कुछ हुआ, या अब तक हो हरा है।
उस मामले को थोड़े से ध्यान से सोचें तो इसकी नींव 2016 में ही पड़ चुकी थी। जब ‘कन्हैया’ और उनके साथी वकील पर ‘वकीलों’ ने हमला किया था। उस समय भी कुछ पुलिस वाले मजे ले रहे थे मजाक उड़ा रहे थे ।
उन्हें इस बात की चिंता नहीं थी कि देश की कानून और व्यवस्था खतरे में है। उन्हें वकीलों का कोर्ट परिसर में तांडव करना जायज लगा क्यूँ कि उन्हें सत्ता का चटुकार और महान देश भक्त होना था और ‘कन्हैया’ ठहरे देश द्रोही ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग वाले। जिसे या तो पाकिस्तान चले जाना चाहिए था या जीवन मृत्यु के पार।
तो अगर किसी भेड़िये की भूख मिटाने के लिए अपने पड़ोसी को परोसोगे ‘जिस से आप नाराज चल रहे हो’ तो उसको जब दुबारा भूख लगेगी तो आप को ही खायेगा।
वो इंतजार क्यूँ करेगा, क्यूँ आप को छोड़ देगा उसके लिए तो आप का परोसी और आप दोनों ही भूख मिटाने का ही सामान हो। तो फिर इतनी चिल्ल्म-चिल्ली क्यूँ ? इस परिस्थिति को सब ने मिल कर न्योता है। देश के बहुसंख्यक लोगों ने, इस की जिम्मेदारी भी सब को लेनी चाहिए।
लेकिन यहां ये भी कोर्ट करना बनता है कि उस दिन ‘कन्हैया’ की जान भी कुछ पुलिसवालों ने
ही अपनी जान पे खेल कर बचाई थी।
इस में कोई दो राय नहीं की हर जगह अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं।

लेकिन सोचने वाली बात है जिन पुलिस वालों को आज सिर्फ थोड़ी मार खाने पर, मानवाधिकार की याद आने लगी अपने हक की बात करने लगे। पुरे ख़ानदान के साथ दिल्ली के सड़कों पे उतर आये। तब इनकी इंसानियत, पुलिसवालों के मान सम्मान और मानवाधिकार का क्या हुआ था जब ‘इंस्पेक्टर सुबोध कुमार’ को भीड़ ने मार डाला था।
और उसके आरोपी भारत माता की जय करते हुए अपने रनिवास तक गए थे ? तब तो इनका खून नहीं खौला था, उनकी बिधवा आज भी उम्मीद भरी नजरों से अपने पति के डिपार्टमेंट की ओर देख रही है।
तो किसी दिन फिर वही लोग अपने रनिवास से भारत माता की जय करते हुए निकलेंगे और किस किस को निगलेंगे ये नहीं कहा जा सकता है।
इसका जबाब कौन देगा कि उन पुलिस वालों को तब क्यूँ नहीं सुझा …???
अपने साथी के लिए गोलबंद होने को ? उसकी बिधवा और उसके बेटे के साथ खड़ा होने के लिए क्यूँ नहीं पुलिस और पुलिस वालों के परिवार और खानदान वाले सड़क पे उतरे, आखिर क्यूँ ???
तब तो मन में सीधा प्रश्न उठता है इस तांडव को रचा गया है,सुनियोजित तरिके से
ये सब बबाल अभी क्यूँ ? जब पूरे देश को पता है दिल्ली की तत्कालीन सरकार और दिल्ली पुलिस में सांप नेवले जैसा संबंध है।
दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते और उस पे तुर्रा ये कि वहां चुनाव भी होने ही वाला है, अगले साल के शुरुआती दिनों में ही शायद।
तो कहीं ऐसा तो नहीं की इस पुरे तांडव का इस कहानी का सूत्रधार कोई और है बस सब अपने अपने किरदार में हैं… ???
लेकिन जो भी हो इसे किसी भी तरिके से उचित नहीं ठहराया जा सकता, और वकीलों के साथ जजों पर भी सवाल उठता है… बांकी तो राम ही जाने। …जय हो
…सिद्धार्थ

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 488 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
शायर कोई और...
शायर कोई और...
के. के. राजीव
बदचलन (हिंदी उपन्यास)
बदचलन (हिंदी उपन्यास)
Shwet Kumar Sinha
*पल्लव काव्य मंच द्वारा कवि सम्मेलन, पुस्तकों का लोकार्पण तथ
*पल्लव काव्य मंच द्वारा कवि सम्मेलन, पुस्तकों का लोकार्पण तथ
Ravi Prakash
तोहमतें,रूसवाईयाँ तंज़ और तन्हाईयाँ
तोहमतें,रूसवाईयाँ तंज़ और तन्हाईयाँ
Shweta Soni
हमने बस यही अनुभव से सीखा है
हमने बस यही अनुभव से सीखा है
कवि दीपक बवेजा
तेरी सूरत में मोहब्बत की झलक है ऐसी ,
तेरी सूरत में मोहब्बत की झलक है ऐसी ,
Phool gufran
आंखें हमारी और दीदार आपका
आंखें हमारी और दीदार आपका
Surinder blackpen
मित्र भेस में आजकल,
मित्र भेस में आजकल,
sushil sarna
"स्वार्थ"
Dr. Kishan tandon kranti
हम इतने भी मशहूर नहीं अपने ही शहर में,
हम इतने भी मशहूर नहीं अपने ही शहर में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
9) “जीवन एक सफ़र”
9) “जीवन एक सफ़र”
Sapna Arora
जिंदगी बंद दरवाजा की तरह है
जिंदगी बंद दरवाजा की तरह है
Harminder Kaur
कोई जब पथ भूल जाएं
कोई जब पथ भूल जाएं
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
रमेशराज की कहमुकरियां
रमेशराज की कहमुकरियां
कवि रमेशराज
पत्रकारिता सामाजिक दर्पण
पत्रकारिता सामाजिक दर्पण
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
आध्यात्मिक जीवन का अर्थ है कि हम अपने शरीर विचार भावना से पर
आध्यात्मिक जीवन का अर्थ है कि हम अपने शरीर विचार भावना से पर
Ravikesh Jha
शोभा वरनि न जाए, अयोध्या धाम की
शोभा वरनि न जाए, अयोध्या धाम की
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
कहते हैं तुम्हें ही जीने का सलीका नहीं है,
कहते हैं तुम्हें ही जीने का सलीका नहीं है,
manjula chauhan
आत्मविश्वास
आत्मविश्वास
Shyam Sundar Subramanian
*कर्मफल सिद्धांत*
*कर्मफल सिद्धांत*
Shashi kala vyas
वीर तुम बढ़े चलो...
वीर तुम बढ़े चलो...
आर एस आघात
रंग बिरंगी दुनिया होती हैं।
रंग बिरंगी दुनिया होती हैं।
Neeraj Agarwal
😊नीचे ऊंट पहाड़ के😊
😊नीचे ऊंट पहाड़ के😊
*प्रणय*
जिन्दगी तेरे लिये
जिन्दगी तेरे लिये
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
एक गुल्लक रख रखी है मैंने,अपने सिरहाने,बड़ी सी...
एक गुल्लक रख रखी है मैंने,अपने सिरहाने,बड़ी सी...
पूर्वार्थ
स्याह एक रात
स्याह एक रात
हिमांशु Kulshrestha
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
जब मां भारत के सड़कों पर निकलता हूं और उस पर जो हमे भयानक गड
Rj Anand Prajapati
3745.💐 *पूर्णिका* 💐
3745.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
हार मैं मानू नहीं
हार मैं मानू नहीं
Anamika Tiwari 'annpurna '
मनुष्य
मनुष्य
Sanjay ' शून्य'
Loading...