तीस हजारी में वकीलों का तांडव
तीस हजारी में वकीलों का तांडव
दिल्ली तीस हजारी कोर्ट में जो कुछ हुआ, या अब तक हो हरा है।
उस मामले को थोड़े से ध्यान से सोचें तो इसकी नींव 2016 में ही पड़ चुकी थी। जब ‘कन्हैया’ और उनके साथी वकील पर ‘वकीलों’ ने हमला किया था। उस समय भी कुछ पुलिस वाले मजे ले रहे थे मजाक उड़ा रहे थे ।
उन्हें इस बात की चिंता नहीं थी कि देश की कानून और व्यवस्था खतरे में है। उन्हें वकीलों का कोर्ट परिसर में तांडव करना जायज लगा क्यूँ कि उन्हें सत्ता का चटुकार और महान देश भक्त होना था और ‘कन्हैया’ ठहरे देश द्रोही ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग वाले। जिसे या तो पाकिस्तान चले जाना चाहिए था या जीवन मृत्यु के पार।
तो अगर किसी भेड़िये की भूख मिटाने के लिए अपने पड़ोसी को परोसोगे ‘जिस से आप नाराज चल रहे हो’ तो उसको जब दुबारा भूख लगेगी तो आप को ही खायेगा।
वो इंतजार क्यूँ करेगा, क्यूँ आप को छोड़ देगा उसके लिए तो आप का परोसी और आप दोनों ही भूख मिटाने का ही सामान हो। तो फिर इतनी चिल्ल्म-चिल्ली क्यूँ ? इस परिस्थिति को सब ने मिल कर न्योता है। देश के बहुसंख्यक लोगों ने, इस की जिम्मेदारी भी सब को लेनी चाहिए।
लेकिन यहां ये भी कोर्ट करना बनता है कि उस दिन ‘कन्हैया’ की जान भी कुछ पुलिसवालों ने
ही अपनी जान पे खेल कर बचाई थी।
इस में कोई दो राय नहीं की हर जगह अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं।
लेकिन सोचने वाली बात है जिन पुलिस वालों को आज सिर्फ थोड़ी मार खाने पर, मानवाधिकार की याद आने लगी अपने हक की बात करने लगे। पुरे ख़ानदान के साथ दिल्ली के सड़कों पे उतर आये। तब इनकी इंसानियत, पुलिसवालों के मान सम्मान और मानवाधिकार का क्या हुआ था जब ‘इंस्पेक्टर सुबोध कुमार’ को भीड़ ने मार डाला था।
और उसके आरोपी भारत माता की जय करते हुए अपने रनिवास तक गए थे ? तब तो इनका खून नहीं खौला था, उनकी बिधवा आज भी उम्मीद भरी नजरों से अपने पति के डिपार्टमेंट की ओर देख रही है।
तो किसी दिन फिर वही लोग अपने रनिवास से भारत माता की जय करते हुए निकलेंगे और किस किस को निगलेंगे ये नहीं कहा जा सकता है।
इसका जबाब कौन देगा कि उन पुलिस वालों को तब क्यूँ नहीं सुझा …???
अपने साथी के लिए गोलबंद होने को ? उसकी बिधवा और उसके बेटे के साथ खड़ा होने के लिए क्यूँ नहीं पुलिस और पुलिस वालों के परिवार और खानदान वाले सड़क पे उतरे, आखिर क्यूँ ???
तब तो मन में सीधा प्रश्न उठता है इस तांडव को रचा गया है,सुनियोजित तरिके से
ये सब बबाल अभी क्यूँ ? जब पूरे देश को पता है दिल्ली की तत्कालीन सरकार और दिल्ली पुलिस में सांप नेवले जैसा संबंध है।
दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते और उस पे तुर्रा ये कि वहां चुनाव भी होने ही वाला है, अगले साल के शुरुआती दिनों में ही शायद।
तो कहीं ऐसा तो नहीं की इस पुरे तांडव का इस कहानी का सूत्रधार कोई और है बस सब अपने अपने किरदार में हैं… ???
लेकिन जो भी हो इसे किसी भी तरिके से उचित नहीं ठहराया जा सकता, और वकीलों के साथ जजों पर भी सवाल उठता है… बांकी तो राम ही जाने। …जय हो
…सिद्धार्थ