तीन शेर
मुझे देखो मैं बूत हूँ
मन्दिर में आस्था का
बतौर रस्म आवोगे तो
खाली ही हाथ जावोगे।
दूरी भी नहीं कोई
और पासभी नहीं हैं
हुम् उनसे हैं मुखातिब
उनकी नजर कहीं है।
तैर कर दरिया लहू का
चाहना पाना किनारा
शैतान की मंजिल है यारों
है नहीं मकसद हमारा।।