तीन बार
कहानी
“तीन बार”
“तू चाहे तो मेरे घर एक हफ्ते तक न आ, लेकिन तू आराम कर। ”
“सुन ले तारा।”
“समझी कि नहीं।”
“जी भाभी! समझी। कर लूंगी आराम..” हँसती हुई तारा बोली।
“थोड़ा गंभीरता से ले मेरी बात को।”
मैं बोली।
“यह तीसरी बार बच्चा गिरा है तेरा।”
मेरी तरफ से घी मेवे ले लेना और लाकर यहां रख ले। यहीं खा लिया कर।” अपनी तरफ से 1000/ – देकर कहा मैंने।
“भाभी जी मेरा आदमी एक विचित्र जानवर है भैया जी जैसा कोई सुलझा हुआ आदर्श पुरुष ना है।”” “खटिया पर लेटना तो दूर बैठ भी न सकती उसके रहते।”
“कहता है ओ हो ! कहाँ की पटरानी आई”
तारा ने हँसते हुए अपनी विपदा यूँ सुना दी मानों कोई लतीफा सुना रही हो।
किस माटी से बनी है यह औरत। दर्द भी इसके आगे पानी भर रहा हो जैसे।
मैं हैरान थी उसके धैर्य पर।
चेहरे पर छायी मुस्कान का झूठा रुपहला पर्दा जो एक छ्द्म ऊर्जा दर्शाता था..
एक ऐसी ऊर्जा, जिसके दम पर बेचारी तीन-तीन बार गर्भपात झेल चुकी है कभी बददिमाग पति की मार से, कभी काम के भार से और कभी प्रकृति के बदले व्यवहार से।
तारा आज तक माँ इसलिए न बन पाई।
यह दर्द एक बार मैं भी झेल चुकी हूँ और उन दिनों का मेरा रोना…… तौबा! तौबा!
एक संजय ही हैं जो मुझे दर्द की इस डूबती नदिया से बाहर निकाल पाए।
“डाॅ ने एक साल तक गर्भ धारण न करने की सख्त हिदायत दी थी।” आज हमारी नन्ही आहना हमारे बीच है यह ईश्वर की कृपा ही है।”
“हे भगवान ! तारा की गोद में भी एक आहना डाल दो। भर दो उस गरीब की खाली झोली। माना कि वह गरीब है लेकिन तेरे दरबार में तो कोई अमीर गरीब नहीं।”
“उसे भी स्त्रीत्व का पूर्ण हकदार बना दो प्रभु।” मेरे हाथ जुड़ गये और बरबस ही अश्रुधारा बह निकली।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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