“तीन चरित्रहीन पत्ते”
कहानी:
तीन चरित्रहीन पत्ते
लेखक:
दिनेश एल० “जैहिंद”
ब्लू ह्वेल सभागार मेहमानों, आगन्तुकों व श्रोताओं से खचाखच भर चुका था । विशेष कर महिलाओं व उनके साथ आए हुए बच्चों का जमावड़ा कुछ ज्यादा नज़र आ रहा था । प्रायोजित कार्यक्रम प्रारंभ होने में अभी कुछ विलम्ब था । लेकिन कुछ ही देर में शुरू होने वाला था ।
यह सभागार जो शहर के कई नामचीन सभागारों में एक था, अपनी भव्यता व विशालता के लिए जाना जाता था । यही कारण था कि महिला उत्कर्ष समाज के प्रबंधकों ने महिला सम्मेलन हेतु इसे ही चुन रखा था । उन्हें भीड़ का पूर्वानुमान था । अत: उन्होंने उचित स्थान सुनिश्चित किया था ।
उद्घाटन करने का समय अब नजदीक आ चुका था क्योंकि काफी वक्त से जिनका इंतजार किया जा रहा था वे अविलंब पहुँचने ही वाले थे । आप जानते हैं कि वे कौन थे – सेठ तुकाराम तुरोहित सिंह, शहर के नामचीन उद्योगपति । हाँ, यही नाम था उनका । है न कुछ अजीब नाम, मगर है भारी भरकम !
विधिवत सेठ तुकाराम तुरोहित सिंह के कर कमलों द्वारा महिला सम्मेलन का उद्घाटन हुआ ।
सभागार सभी महिलाओं और पुरुषों की तालियों से गूंज उठा । कुछ देर तक तालियाँ गूँजती रहीं । संचालिका श्रीमती निधि मेहता ने उनसे प्रथम दो शब्द सम्मिलित श्रोताओं व दर्शकों के सामने रखने की पेशकश की । उपस्थित दर्शकों के कान खडे हो गए । शांति चारों तरफ फैल गई ।
सेठ तुकाराम तुरोहित जी ने माइक सम्भाला और बोलना प्रारम्भ किया –
“उपस्थित संस्थापक महोदय, कोषाध्यक्ष व सचिव महोदय तथा समस्त उपस्थित गणमान्य महिलाओ व पुरुषो !
आप सबों का नमन्, धन्यवाद जो आप सब अपने बहुमूल्य समय से दो पल निकालकर यहाँ उपस्थित हुए और इस सम्मेलन को सफल बनाने में हमारा सहयोग किया ।
हम आज यहाँ इकट्ठे हुए हैं उन महिलाओं की उन्नति, विकास व सहभागिता पर विशेष परिचर्चा करने हेतु जो हमारे समाज, परिवार व राष्ट्र का अभिन्न अंग हैं । जिनके बिना हमारे परिवार, समाज व राष्ट्र की परिकल्पना बेकार और अधूरी है । हम यहाँ महिलाओं की समाज में सहभागिता व राष्ट्र के संग मुख्यधारा से जोड़ने पर विशेष चर्चा करेंगे और इनके साथ ही उनके स्वास्थ्य और शिक्षा पर भी कमोवेश चर्चा करेंगे ।
तो हमारे बीच मंच पर तमाम चिंतक, विचारक, समाज शास्त्री, मंत्री, नेता, विद्वान कवि-लेखक उपस्थित हैं, जो बारी-बारी आप सबों के समक्ष अपने-अपने विचार रखेंगे । और हाँ, आप सब हमसे अलग नहीं हैं, आप सबों का भी स्वागत है । आप भी अपने विचार रख सकते हैं । जय हिंद-जय भारत ।”
सेठ तुकाराम तुरोहित जी का इतना कहना था कि सभागार तालियों से गड़गड़ा उठा । कुछ देर तक आवाज़ सभागार में गुंजायमान होती रही ।
संचालिका श्रीमती निधि मेहता ने सेठ तुकाराम तुरोहित जी का धन्यवाद जताया और फिर संस्थापक महोदय को आमंत्रित किया ।
उन्होंने कुछ विशेष नहीं कहा इसके सिवा कि महिला उत्कर्ष समाज का जो भी कार्य और उद्देश्य है, उनकी पूर्ति में पदाधिकारियों और सदस्यों का सहयोग व तत्परता हमेशा बनी रहनी चाहिए तथा इसके उद्देश्य पूर्ति में कोई भी कोताही नहीं बरती जानी चाहिए ।
चलते-चलते जैसे ही उन्होंने “जय हिंद – जय भारत” कहा वैसे ही पुनः ब्लू ह्वेल सभागार तालियों से गूंज उठा । इसी के साथ संचारिका महोदया ने तीसरे नम्बर पर शिक्षा मंत्री श्री सुखविन्दर खन्ना को आमंत्रित किया ।
उन्होंने माइक हाथ में थामते ही अपना जलवा बिखेरना शुरू कर दिया । कहा कि, “मैं सुखविन्दर खन्ना मंच पर उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों व सज्जनों का तथा इस महिला समाज का अभिनंदन करता हूँ । ये महिलाएं हमारी माँ, भाभी, बहनें, बहू-बेटियाँ हैं । अगर आज ये वजूद में हैं, तो ही हम पुरुषों का वजूद इस धरती पर बरकरार है, वरना हम मानव जाति का वजूद कब का खत्म हो चुका होता । अत: हमें इनकी सलामती व खुशहाली का हर सम्भव प्रयास करते रहना चाहिए । इसके लिए जरूरी है कि हम महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें । उन्हें शिक्षा का मौका दें, उन्हें अधिक-से-अधिक पढ़ाएं, लिखाएं और उन्हें इस काबिल बनाएं कि वे अपना सिर ऊँचा करके समाज में चल सकें और अपना मान-सम्मान जिंदा रख सकें । बस, मैं इतना ही बोलकर अपना वक्तव्य समाप्त करता हूँ । जय हिंद, जय भारत ।
इस बार तो “वाह-वाह ! खूब-खूब !!” के साथ तालियों का शोर रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था । शिक्षा मंत्री सुखविंदर जी वाहवाही व तालियाँ बटोरते हुए जाकर अपनी सीट पर बैठ गए और इधर संचारिका महोदया ने चौथे सज्जन व महान समाज शास्त्री श्रीमान बटुकनाथ चौबे जी को आमंत्रित किया और उन्हें माइक पकड़ा दिया ।
श्रीमान बटुकनाथ चौबे जी ने मंच पर आसीन विद्वान सज्जनों का अभिनंदन किया । तत्पश्चात उपस्थित सभी महिलाओं, पुरुषों व बच्चों का अभिवादन किया और लगे हाथ संचालिका महोदया श्रीमती निधि मेहता की भी अच्छे संचालन हेतु प्रशंसा की । और फिर सम्मुख बैठे तमाम महिला व पुरुष श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए कहा-
“ भाइयो और बहनो ! मैं कुछ मोटी और छोटी-छोटी बातें बताऊँगा, जो बड़े ही महत्त्वपूर्ण की हैं । हम उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते । ये महिलाएं हमारे परिवार की धुरी हैं । ये सूत्रधार हैं, जो हमारे परिवार के सभी सदस्यों को एक धागे में पिरोए रहती हैं । ये परिवार, फिर समाज, फिर राष्ट्र, इस पूरे विश्व की ही जननी हैं । ये हमारी श्रद्धा हैं, श्रद्धा की पात्रा हैं । हम इनके अत्याचारी और व्यभिचारी नहीं बन सकते हैं । आए दिन हमारे देश में बच्चियों, नाबालिगों और महिलाओं के साथ दुष्कर्म हो रहे हैं । उन पर जुल्म और अत्याचार हो रहे हैं । उनके साथ अन्याय और उत्पीड़न हो रहे हैं । इन पर हमें अंकुश लगाना है । अपने आप पर अंकुश लगाना है । मैं आज आप सबों को एक नयी बात बोलूँ, आप सब इस पर विचार कीजिएगा । इस सारी स्त्री जाति को अब इस बाहर की दुनिया में छोड़ दिया जाय और इस पुरुष जाति को अंदर की दुनिया में समेट लिया जाय । अगर ऐसा हो जाता है तो महिलाओं का साठ प्रतिशत कल्याण हो जाएगा । फिर हमारा परिवार व समाज सुधर जाएगा । देश विकास और उन्नति की राह पर चल पड़ेगा । बस । जय हिंद-जय भारत !”
एक बार फिर तालियों की गड़गड़ाट से सारा हॉल गूंज उठा और गूँजता ही रहा ।
संचालिका महोदया ने इसी तरह बारी-बारी से उपस्थित महानुभावों को बुलाती रहीं और शेष सभी ने अपने-अपने विचार और अपनी-अपनी राय रखी । उपस्थित श्रोताओं में से भी कइयों ने अपने-अपने विचार रखे । तत्पश्चात सम्मेलन समापन की घोषणा हुई ।
शाम को चार बजे यह महिला सम्मेलन समाप्त हो गया । लोगबाग सोचते-विचारते अपने-अपने घरों को चल पड़े ।
शाम को अपने घर पर सेठ तुकाराम तुरोहित जी और उनकी पत्नी डाइनिंग रूम में बैठे आराम फरमा रहे थे । भोजन तैयार होने के पश्चात दोनों ने सबों के साथ रात का भोजन किया और सब अपने-अपने शयनकक्षों में सोने चले गए ।
सेठ तुकाराम तुरोहित की पत्नी अपने शयनकक्ष में बिस्तर पर लेटे-लेटे मोबाइल चला रही थी । तभी उन्होंने अन्दर प्रवेश किया और दरवाज़ा बंद किया । टहलते हुए नाइटी पोशाक पहनी, फिर वे बिस्तर पर लेट गए ।
“… अब रखो भी मोबाइल ।”
“…. ठहरो । आज दिन भर मोबाइल नहीं देख पायी हूँ ।”
“तो रात भर मोबाइल ही चलाती रहोगी ।”
“नहीं ! महिला सम्मेलन से जुड़े कुछ अच्छे फोटोज़ सहेलियों को तो भेज दूँ ।”
“अरे, कल सबेरे भेज देना । इतनी जल्दी क्या है !”
इतना कहने के साथ ही सेठ तुकाराम तुरोहित ने उसके शरीर पर अपना दाहिना हाथ फेरा । और अपनी ओर खींचा यह कहते हुए कि,
“रखो भी और….. !”
उनकी पत्नी मोबाइल के स्क्रीन पर नज़रें गड़ाए ही उनका हाथ पकड़ा और झटक दिया ।
पुरुष “अंह” को जैसे भारी ठेस लगी, मगर सेठ तुकाराम ने खुद को सम्भाला और मोबाइल को छिनना चाहा, मगर उनकी पत्नी ने अपना हाथ हटा लिया यह कहते हुए कि,
“तुम चुपचाप सो जाओ । मैं दिन भर की थकी हारी हूँ । उस पर से सम्मेलन का भार हप्ते भर से झेल रही हूँ ।”
इतना सुनते ही सेठ तुकाराम तुरोहित बिस्तर छोड़कर उठे, कपड़े बदले, कार की चाबी ली और दरवाज़ा खोलकर निकल गये । उनकी पत्नी मोबाइल चलाती रही ।
सेठ तुकाराम तुरोहित जी की कार सड़क पर तेज गति से भाग रही थी और ………..
इधर शिक्षा मंत्री श्री सुखविंदर खन्ना बिस्तर पर बैठे-बैठे अपनी पत्नी से प्रेमालाप कर रहा थे और जैसे ही उसने अपनी पत्नी को अपने बाहुपाश में बाँधना चाहा वैसे ही उनकी पत्नी ने उनका आलिंगन छुड़ाकर बिस्तर से दूर भागा और खड़ी हो गई ।
“ये क्या बदतमीजी है ?”
“बदतमीजी…. ! अरे, मैं तुम्हारा पति हूँ ।”
“पति हैं तो क्या हुआ । जब देखो तब आप…. ।”
“अरे, दिल ही तो है । ….. दिल माँगे मोर । मेरा क्या कुसूर है !”
“छोड़ो-छोड़ो बातें बनाना । जब देखो तब…. जैसे दूसरा कोई काम ही नहीं है ।”
“अरे यार, मान भी जा ना ।” इस बार पत्नी का हाथ पकड़कर पास खींचते हुए उन्होंने कहा,
“कमाल करती हो यार ।”
“सुनो, मैं थकी हुई हूँ और ढेर सारा काम भी है । महिला सम्मेलन के फोटोज़ फेसबुक व ह्वाटस् एप्प पर सहेलियों को शेयर करने हैं, एक आलेख भी लिखना और पोस्ट करना है ।
और दूसरा मैं कपड़ों (पीरियड) से हूँ, बदन टूट रहा है । इतना सारा काम …. सिर भारी हुआ जा रहा है । …..और तुम हो कि….. । सोना नहीं है क्या ?”
जब इतनी कड़वी घूँटी पिलाई पत्नी ने तो खन्ना साहेब की अक्ल ठिकाने आई । और उन्होंने सूट-बूट चढ़ाई और तेजी से बाहर निकल गए । गैरेज से मोटर साइकिल निकाली, फिर पलक झपकते उनकी गाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी ।
शहर का पाँच सितारा गैलेक्सी होटल ।
होटल के सम्मुख अपनी विपरीत दिशाओं में भागती लम्बी-चौड़ी सड़क ।
होटल के सामने सड़क पर लाल कार चुचियाती हुई आकर रुकी । उसके रुकते ही दरवाज़ा खोलकर सेठ तुकाराम तुरोहित जी बाहर निकले । दरवाज़ा बंदकर एक नज़र दुल्हन जैसे सजे होटल को उन्होंने नज़र भर ऊपर से नीचे तक निहारा और अपने आस-पास नज़रें दौड़ाईं ।
तभी चटकदार नीले रंग की एक मोटर साइकिल ठीक उनके सामने आकर रुकी ।
“अरे भाई, ठीक से गाड़ी चलाओ ।” सेठ तुकाराम तुरोहित जी ने मोटर साइकिल वाले को देखते हुए कहा – “गाड़ी मुझसे लड़ानी है क्या ?”
“नहीं, तुकाराम तुरोहित जी ! मैं कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं हूँ ।”
“अरे, खन्ना साहेब …… , आप ! इतनी रात को ….?”
“ यही सवाल तो मैं भी आपसे कर सकता हूँ ।” खन्ना साहेब ने कहा और “हा.. हा.. हा..” करके हँसने लगे । सेठ तुकाराम तुरोहित जी खन्ना साहेब के प्रश्न का मतलब समझते हुए उनकी हँसी में हँसी मिलाई । हँसते हुए दोनों एक साथ चल पड़े होटल की ओर । होटल के काउंटर पर पहुँचते ही अपनी कार की चाबी एक बैयरे को उछाली और कहा कि कार को पार्किंग कर दे ।
और जैसे ही वे लेडी रिसेप्शनिस्ट से मुखातिब हुए वहीं बटुकनाथ जी खड़े मिले । एक से दो और अब वे दो से तीन हो गए । गजब संयोग बना । दोपहर में तीनों एक साथ थे और जुदा होने के बाद पुनः देर रात तीनों होटल के काउंटर पर थे ।
“हाय-हल्लो” के बाद तीनों काउंटर से थोड़ा हटकर आपस में कुछ गुपचुप बातें कीं । और पुनः काउंटर की ओर लौटे ।
तीनों ने अपने लिए एक-एक कमरे बुक किए फिर कमरों की चाबियाँ लीं और वे अपने कमरों की और बढ़ चले ।
उनके कमरे तीसरी मंजिल पर थे । दो के कमरे आमने-सामने रहे और एक का कमरा बगल में रहा ।
सेठ तुकाराम तुरोहित जी ने कमरे के पास पहुँचते ही पहले अपना कमरा खोला और दरवाज़ा खुलते ही तीनों के तीनों एक ही कमरे में प्रवेश हो लिये ।
बटुकनाथ जी बत्तियाँ जलाईं और पंखा चालू किया । फिर तोनों बेड पर बैठ गए । सेठ तुकाराम तुरोहित जी ने जेब से मोबाइल निकाला और खन्ना साहेब की ओर बढ़ाकर गर्लस् सप्लायर को नम्बर मिलाने को कहा । खन्ना साहेब ने नम्बर डायल किया ।
उधर से आवाज़ आई- “हल्लो ! हल्लो !!”
“विनोद, मैं खन्ना सर बोल रहा हूँ गैलेक्सी होटल, कमरा नम्बर 303 से ।”
“हाँ सर, कहिए । … क्या सेवा है ?”
“तीन तितलियाँ चाहिए थीं । तुम ऐसा करो कि पाँच-सात भेज दो । हम उनमें से अपनी च्वॉयस के तीन रख लेंगे, बाक़ी को लौटा देंगे ।”
“ठीक है खन्ना सर ।”
“कब तक भेज रहे हो ।”
“यही कोई 25 से 30 मिनट में ।”
“ठीक है ।”
तभी अचानक कमरे की नोकिंग बेल बजी । सेठ तुकाराम तुरोहित जी ने दरवाज़ा खोला ।
बैयरा “कमिंग इन” बोलकर अंदर आया । कुछ खाने-पीने का ऑडर लिया और “अभी लाया” कहकर चला गया ।
कोई पाँच मिनट बाद पुनः बैयरा आया । दरवाज़ा खुला था, अंदर घुसा और खाने-पीने का सामान रखकर चला गया ।
उसके जाने के ठीक कोई दस मिनट बाद पुनः नोकिंग बेल बजा । बटुकनाथ जी ने इस बार दरवाज़ा खोला । दरवाज़ा खुलते ही एक-से-एक बढ़कर सात तितलियों ने अंदर प्रवेश किया । फिर यही कोई पाँच मिनट बाद उनमें से चार तितलियाँ दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल गईं ।
कमरा अंदर से बंद हो गया । थोड़ी देर तक खाने-पीने का दौर चला । फिर खन्ना साहेब और बटुकनाथ जी ने अपने-अपने कमरे की चाबी उठाई । तत्पश्चात अपनी-अपनी च्वॉयस की तितलियों को अपनी ओर खींचा और अपने-अपने कमरे की ओर बढ़ चले ।
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लेखक:
दिनेश एल० “जैहिंद”