तीन कृषि कानून की प्रस्तावना
तीन कृषि कानूनों के कारण और खौफ की वजह
? धरातल पर परिणाम.
जमीन एक भौतिक ऐसेट है.
जो व्यक्ति परिवार समाज को एक भौतिक सामाजिक पहचान देती है.
कुछ बेईमानों ने स्त्री और शूद्र को अछूत सिद्ध करके उन्हें इससे वंचित रखा.
समय बदला,
संविधान बना,
लोकतंत्र स्थापित हुआ,
समाजवाद, एकाधिकार, समानता, स्वतंत्र विचार, आजादी जैसी मानवीय, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, अर्थव्यवस्था पर परिवर्तन आने लगे,
हक निर्धारित हुये,
शिक्षा/चिकित्सा/रोजगार
कारखाने/टैक्नोलॉजी/यातायात/वित्तीय ढाँचे ढलने में देश ढलने लगा.
दुर्घटना वश पूँजीवाद ने अपने पतन के बाद
एकबार फिर मुहँ खोला.
और सबके सब निर्धारण पूँजीपतियों के भेंट चढ गई,
दुनियाभर की योजनाएं आयी,
परिणाम खोदा पहाड निकली चूहिया.
वो कौन बेवकूफ है जो खाद्यान्न पर जमाखोरी कानून हटाकर,
खाद्यान्न के मूल्य निर्धारित करना चाहते है.
एम,एस,पी यानि प्रोत्साहन क्षेत्र जिस पर कानूनी जिक्र तक नहीं,
खुली मंडी और खुली छूट *खरीद की गारंटी पर निर्भर है,
सरकार का पल्ला झाडने का अर्थ,
सरदर्दी किसानों के सिर पर.
कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग मतलब खर्च और प्रबंधन नीजि कंपनियों का हस्तक्षेप,
एफ,सी,आई अर्थहीन रह जायेगा,
शेष अगली पोस्ट में …..