तीन कुण्डलिया
(१)
आ़यी जीवनसंगिनी,नहीं अब तलक यार.
जाने कब देगा सरस,दुलहिन इक करतार.
दुलहिन इक करतार,माँगती रहती माता.
मिलेगी या न यार,प्रश्न यह दिल में आता.
कह सतीश कविराय,उदासी मन में छायी.
अब तक दिल-सी मीत,नहीं जीवन में आयी.
(२)
भैया धर्म के काम भी,पूर्ण न माने जाँय.
जब तक बाँये पक्ष में,संगिनी न बैठाँय.
संगिनी न बैठाँय.तब तलक विफल हवन हों.
फिर हम कैसे बंधु,बहुरिया बिना मगन हों.
कह सतीश कविराय,बनेगा कौन खिवैया.
कठिन उड़ाना मौज,बिना दुलहिन के भैया.
(३)
तन्हाई जीवन भखै,भखै सकल आनंद.
मनुआ बेपरवाह हो,पा ले परमानंद.
पा ले परमानंद,प्यार मत माँग किसी से.
रख ले व्यथा सम्हाल,सोच न कोई पसीजे.
कह सतीश कविराय,छोड़ सब चिन्ता भाई.
गहरे पानी पैठ,मात खाये तन्हाई.
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)
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