तीखे दोहे
तीखे दोहे
तप बल के आधार पर, होते संकट दूर।
युगों युगों से मान्यता, हैं प्रमाण भरपूर ।।
तपस्या कलियुगी हुई,भूले उच्च विधान ।
ऋषि संतों की साधना,दूर करे अज्ञान ।।
तप बल के आधार पर,हुआ जगत विस्तार।
अब संकट है देश पर, नहीं मिला आधार।।
लगता तप भी कलियुगी,देत नहीं परिणाम।
बरना सच्ची साधना, आती जग के काम।।
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सोच सभी की अलग है,होते अलग विचार ।
अपना मत अच्छा लगे, बाकी सब बेकार ।।
स्वार्थ छिपा हर कार्य में, चले श्वास निःस्वार्थ ।
यही जगत की रीति है,समझ रहे युग पार्थ।।
चाहे पूजन भजन हो,चाहे सेवा नाथ।
बिना कामना मन लिए,नहीं किसी का साथ ।।
नाम कमाना चाहते,चाहें यश धन मान।
सेवा जैसे कार्य में, स्वार्थ छिपा श्रीमान ।।
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