तिलका छंद….
(विश्व पर्यावरण दिवस पर )
बरखा बरसे
न जिया तरसे।
शुचि वायु बहे
दुख ही न रहे।
चिड़िया चहकें
बगिया महके।
खिलते फुलवा
खुश हो मनवा।
मकरंद भरा
उड़ता भंवरा।
वन की खुशबू
बसती हरसू।
वन काट रहे
दुख बांट रहे।
उनको न सता
कर तू न ख़ता।
वह कोप करे
सब नष्ट करे।
विकराल बने
बस काल बने।
हितचिन्तक हैं
जग पालक है।
सब मान करें
हम ध्यान करें।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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