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15 Jun 2023 · 1 min read

तिलका छंद….

(विश्व पर्यावरण दिवस पर )

बरखा बरसे
न जिया तरसे।

शुचि वायु बहे
दुख ही न रहे।

चिड़िया चहकें
बगिया महके।

खिलते फुलवा
खुश हो मनवा।

मकरंद भरा
उड़ता भंवरा।

वन की खुशबू
बसती हरसू।

वन काट रहे
दुख बांट रहे।

उनको न सता
कर तू न ख़ता।

वह कोप करे
सब नष्ट करे।

विकराल बने
बस काल बने।

हितचिन्तक हैं
जग पालक है।

सब मान करें
हम ध्यान करें।

रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©

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