तालीम का मजहब
तालीम का मजहब
हाँ, मुझे आज भी, यह अच्छी तरह से याद है,
मेरी किसी स्कूल में मेरा कोई मज़हब नहीं था,
मेरे गुरुवर रहे होंगे, चाहे किसी भी धरम से,
उनकी शिक्षाओं का कभी कोई मज़हब नहीं था,
मेरे दोस्त भी हमेशा से मेरे दोस्त ही बन कर रहे,
मेरे उन फरिश्तों का कभी कोई मज़हब नहीं था,
इसीलिए आज, प्रभु से, मेरी बस इतनी सी अरदास हो,
इंसानियत, दोस्ती, मुहब्बत की सीख हम सभी के पास हो ,
जिन्हें जो धरम, मजहब मनाना हो, अपने ज़ेहन में बुलंद करें,
जिन्हें जो रीत रिवाज़ निभाने हों, अपने घर आंगन सानंद करें,
मत घुसने दें, आडंबरों, पाखंडों की, इस अंधी भीड़ को,
हमारे सीख, शिक्षा तालीम सबक के इन पाक मंदिरों में,
संपूर्णता, समग्रता, कभी भी किन्हीं चिन्हों की मोहताज नहीं होती,
बंध ही नहीं सकती है सृष्टि और हस्ती, कुछ संकीर्ण हस्ताक्षरों में,
और ये बात मेरे सभी संगी साथी, राहबर, कतई कतई ना भूलें,
चौराहे पर खड़ी भीड़ का कभी कोई धरम या मज़हब नहीं था
हाँ, हाँ, मुझे आज भी, यह अच्छी तरह से याद है,
मेरी किसी भी स्कूल में मेरा कोई मज़हब नहीं था
~ नितिन जोधपुरी ‘छीण’