नदी का किनारा ।
नदी का किनारा ,
लगता कितना प्यारा।
किसी का ये आशियाँ,
है सबसे न्यारा।
ठहरा हुआ जल है,
मछलिया घुल मिल है।
बतखों ने इसको,
अपनी चोंच से सँभारा ।
दादुर ने इसमें ही,
टर टर पुकारा।
अति सुंदर है,
यह भव्य नजारा।
कितनो को इसने ,
मंजिल से मिलाया।
कितने बिछड़ो को,
है रास्ता दिखाया।
डूबे हुए को इसने,
पार लगाया।
पहुंचा वही किनारे ,
जो कभी न हारा।
असंख्य ‘दीपों’ ने ,
इसको खूब संवारा।
रोशनी से जगमग,
लगता सबसे न्यारा ।
-जारी
-कुल’दीप’ मिश्रा