तारीफ़ करूँ क्या हुस्न की
***** तारीफ़ करूँ क्या हुस्न की (गीत) ****
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तारीफ करूँ क्या हुस्न की कोई हिसाब नहीं,
भोले – भाले चेहरे का कोई जवाब नहीं।
सुनकर दो शब्द प्रेम के आँखे झुकी-झुकी हैं,
रातों की नींद चुरा न ले सांसें रुकी रुकी है,
पहले कभी न है देखा कहीं कोई ख़्वाब नहीं।
भोले – भाले चेहरे का कोई जवाब नहीं।
मोटी – मोटी मृगनयनी आँखें मयभरी सी हैं,
मन मंत्रमुग्ध कर देती अदाएं मनचली सी है,
कहीं हंसीं मुखड़े पर चढ़ाया तो नकाब नहीं।
भोले – भाले चेहरे का कोई जवाब नहीं।
गोरे – गोरे गाल गुलाबी रंग में हो रंगे,
जवानी की दहलीज पर यौवन का रंग चढ़े,
होशोहवास खो जाए देखा ऐसा शवाब नहीं।
भोले – भाले चेहरे का कोई जवाब नहीं।
मनसीरत सोना चाहता गेसुओं की छांव में,
बजती रहती पायल गौरी चलती के पांव में,
सुर्ख़ लहू से लाल होठों सा कोई गुलाब नहीं।
भोले – भाले चेहरे का कोई जवाब नहीं।
तारीफ करूँ क्या हुस्न की कोई हिसाब नही।
भोले – भाले चेहरे का कोई जवाब नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)