ताप संताप के दोहे. . . .
ताप संताप के दोहे. . . .
आई गर्मी ताप में , विहग ढूँढते छाँव ।
शहर भरा कंक्रीट से, वृक्षहीन हैं गाँव ।।
कहाँ टिकाएं पाँव ।
हुए भयंकर ताप में , जीव सभी हैरान ।
पेड़ कटे छाया मिटी , राह लगे सुनसान ।।
सूरज अपने ताप का, देख जरा संताप।
हरियाली को दे दिया, तूने जैसे श्राप ।।
भानु रशिम कर रही, कैसा तांडव आज।
वसुधा की काया फटी,ठूंठ बने सरताज।।
वसुंधरा का हो गया, देखो कैसा रूप।
हरियाली को खा गई, भानु तेरी धूप।।
सुशील सरना / 20-5-24