ताटंक छंद
मधुर मधुर दीपक तुम जलना, आएगी जब दीवाली।
सारे तम ही मिट जाएंगे, बीत गईं
रातें काली।।
पर्व तभी जब सब हँसते हों,हर घर किलकारी गूँजे।
हर घर बसे समृद्धि वैभव, सब खुश हो लक्ष्मी पूजें।।
अन्तराल पर आया अवसर,मिट गईं दूरियाँ सारी।
वर्ष दो संघर्ष संग कटे, काल बनी थी बीमारी।।
आओ प्रेमिल दीप जलाएं,शांति की सजे रंगोली।
मिलजुल दीपक पर्व मनाएं, प्यारी हम बोलें बोली।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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