ताजमहल
दरिया के किनारे,
एक मकबरा तामीर हुआ,
जिसे कहते हैं भई वाह
क्या खूब ताज महल।
तमाम बीबियों के हरम का
इकला शौहर,
ये कैसी मुहब्बत थी
बादशाह शाहजहाँ तेरी।
शिकार हवश की हुई थी
बेचारी बेगम,
हुए पैदा मुमताज से
दर्जन से ज्यादा बच्चे।
दूजी खातून का
ख्याल तक न करते थे।
एक श्री राम जिसकी
बीबी थी महज सीता।
हुआ अच्छा कि मजनूँ
शहंशाह न था वरना,
दफन हो जाता उसका प्यार
एक ताज महल बनकर।
बड़े अदब से मेरा सलाम
उस दीवाने को,
फना हुआ जो मुहब्बत में
लैला लैला कहते।
बात तो तब है
जीते जी दिल से प्यार करो।
हजार ताज महल
कब्र पर किस काम के हैं।
दिल में था प्यार अगर
खुद भी कुछ कुर्बानी देते,
किया बर्बाद फ़क़त
रियासत के लगान का पैसा।
कितना इनाम देते हैं
खुश होकर के लोग,
हाथ ही काट लिये कारीगर का
ताज महल के बदले।
जीते जी महल बनाते
वह भी तन्ख्वाह से,
अगर देना था
मुमताज को निशानी कोई।
भला मुमताज के किस काम का
ये नायाब तोहफा,
हुआ तामीर उसकी कब्र पर
जो ये ताजमहल।