तस्वीर
तस्वीर मेरी दीवार पर लगी
मुझे निहार रही,
लग जा गले मेरे बड़ी शिद्दत
से मुझे पुकार रही।
पूछती है मुझ से कहां गया वो
अल्हड़पन तेरा,
पहली सी नहीं क्यों तेरे शब्दों
झंकार में रही।
क्यों अब छोटी छोटी बातों पर
ज़िद नहीं करती हो,
जैसे पल पल मन को हो तुम
मार रही,
सबकी खुशियों का ख्याल तो
है तुम्हें,
ख्वाईशें क्यों अपनी सभी यूँ
वार रही
याद रहता है तुम्हें हर फ़र्ज़
दुनियां का निभाना,
क्यों नहीं नज़र अपनी तरफ
भी मार रही।
सफर जारी है अब भी तेरी
जिम्मेदारियों का,
तारीफ मिले किसी अपने की
बस यही दरकार रही।
ये उम्मीद मत लगाना की कोई
सराहेगा तुझे,
कहते हैं लोग अच्छा तभी सज
तस्वीर चंदनहार रही।
सीमा शर्मा