तलाश
मैंने,
कल इश्क़ की रूह को
तलाश ही लिया
गूड़े मुड़े काग़ज़ों के ढेर में
चुपचाप मेरे शब्द ओढ़े सो रही थी
रूह सोई तो शब्द भी मौन…
था मेरे अंदर ऐसा कौन
बेवजह इंतज़ार के
सन्नाटे को आकार दे रहा था
मेरा क्षीण होता तन
या आस ओढ़े मेरा मन ।
मैंने,
कल इश्क़ की रूह को
तलाश ही लिया
गूड़े मुड़े काग़ज़ों के ढेर में
चुपचाप मेरे शब्द ओढ़े सो रही थी
रूह सोई तो शब्द भी मौन…
था मेरे अंदर ऐसा कौन
बेवजह इंतज़ार के
सन्नाटे को आकार दे रहा था
मेरा क्षीण होता तन
या आस ओढ़े मेरा मन ।