तलवे जो हैं चाटते
कुंडलिया छंद…
तलवे धोकर पी रहे, जो साहब दिन रात।
करना तुम देखो नहीं, उनकी कोई बात।।
उनकी कोई बात, बड़े प्रिय यह है होते।
करते अपना काम, बोझ साहब का ढ़ोते।।
धन-दौलत बटमार, दिखाते रहते जलवे।
‘राही’ निकृष्ट कार्य, चाटते जो हैं तलवे।। 602
डाॅ. राजेन्द्र सिंह ‘राही’