तरही ग़ज़लः
तरही ग़ज़लः
221 1221 1221 122
शबनम में निराशा सा ठहर देख रहा हूँ
गमगीन को बदलने की नज़र देख रहा हूँ |
उदासियाँ दिल की कभी निकले भी सोचो
आदत के सुधरने की अधर देख रहा हूँ |
मुश्किल में जानो कर्म करने नहीं देते
मौसम से बहलने को बशर देख रहा हूँ |
पाया मन तूफान भरा समझते नहीं
घमंडी अकड़ निकलने डगर देख रहा हूँ |
उलझे से संवादों सुन दिकत बनी है
बढ़ती हुई जोखिम की लहर देख रहा हूँ |
स्वरचित -रेखा मोहन पंजाब