तरक्की
मेरे दफ्तर से घर आते ही श्रीमती जी ने कही,
अजी सुनते हो, शर्मा जी की तो हो गई.
तुम्हारी पता नहीं कब होगी तरक्की ?
शायद मैं ही हूँ इस मामले में अनलाक्की.
आप तो काम काम रोते हो,
दिन रत काम का बोझा ढोते हो.
काम कहीं आया काम तुम्हारे ?
एक-एक करके साथ वाले आगे निकल गए सारे.
एक तुम हो वहीँ के वहीँ पड़े हो,
अड़ियल घोड़े की तरह अड़े हो.
मिसेज शर्मा को मैं आज मान गई,
कैसी ली है तरक्की जान गई.
मिसेज शर्मा ने बताया …
देख नहीं रहे हवा के रुख में हो रहा परिवर्तन निरंतर,
तभी तो आ गया है आज के रहन सहन में अंतर.
कह रही थी आप देखते हो कि नहीं ?
अब तो पहले वाली हवा ही नहीं रही.
पहले साइकिल में हवा भरवाए महीनों गुजर जाते थे,
महीनों बाद ही साइकिल में हवा भरवाते थे .
अब साइकिल में हवा कहाँ ठहर पाती है,
दुकान से घर तक जाते जाते निकल जाती है.
उन्होंने भी हवा के रुख को पहचान लिया है,
तभी तो ‘प्रेस्टीज’ को बेच दिया है.
जो था कभी पति के दिल में उनके प्यार का प्रतीक,
बेच दिया उन्होंने वही ‘प्रेस्टीज’.
‘पुराने के बदले नया’ वाली स्कीम का उपयोग किया,
और ‘प्रेस्टीज’ को बेच कर ‘यूनाइटेड’ ले लिया.
और ‘यूनाइटेड’ ने कर दिया कमाल,
मिली तरक्की इत्यादि-इत्यादि.
आप का ‘प्रेस्टीज’ बेचने का ईरादा नहीं है क्या ?
इसके सिवाए तरक्की का रास्ता कहीं है क्या ?
यह सब सुन मन रो दिया,
भारतवर्ष ने अपना गौरव कहाँ खो दिया ?
संसार को जिसने कर्म का सन्देश दिया,
वहां पर लोगों ने यह कैसा रास्ता अपना लिया ?