” तम के बाद उजास है ” !!
तुम चुग लो ममता का दाना ,
इसमें बड़ी मिठास है !!
यहाँ वहाँ मैं आस जगाती ,
दौड़ रही हूँ इत उत को !
भूख प्यास को भूली अपनी ,
करूँ जतन हूँ मैं नित को !
निर्भय होकर रहो साथ में ,
तम के बाद उजास है !!
बार बार तुम मुँह ना खोलो ,
धीरज भी धरना होगा !
आज घनेरी मिली छाँह है ,
मिले धूप तपना होगा !
समय सिखाता सीख भली है ,
ढीली करे न रास है !!
मैं दुखियारी यही चाहती ,
जीवन भर खुशियाँ पाओ !
जितने दिन का साथ मिला है ,
बनो सयाने , मुस्काओ !
मैं निरीह जीवन थोड़ा है ,
तुम हो तो मधुमास है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )