तमाल छंद में सभी विधाएं सउदाहरण
तमाल छंद विधान – मात्रिक छंद (परिभाषा)
छंद शास्त्र के अनुसार तमाल छंद महापौराणिक जाती का 19 मात्रिक छंद है। ये एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते है
दो दो अथवा चारो चरणों में तुकांत कर सकते है
चरण के अंत में गुरु लघु ( गाल 21 ) होना अनिवार्य है।
विधानुसार यदि #चौपाई_छंद में एक गुरु और एक लघु चरणांत में जोड़ दिया जाय तब #तमाल_छंद बन जाता है।
चौपाई छंद का विधान सर्वविदित है , जो कि निम्न है-
चौपाई छंद ~चौकल और अठकल के मेल से बनती है।
चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएँ निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4
चौपाई में कल निर्वहन केवल चतुष्कल और अठकल से होता है। अतः एकल या त्रिकल का प्रयोग करें तो उसके तुरन्त बाद विषम कल शब्द रख समकल बना लें। जैसे 3+3 या 3+1 इत्यादि।
चौकल = 4 – चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।
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वर्तमान में कुछ बंधु मात्रिक छंदो को वार्णिक मापनी से समझा रहे है , जो हमारे गले नहीं उतरता है और न हम इसके पक्षकार है | आजकल ऐसे ही अन्य छंदो को लेकर मंचो पर प्रलाप चल रहें है |
पर हम इन सबसे दूर है ,| मात्रिक छंदो को वार्णिक मापनी की तरह लिखना समझ से परे है 🙏
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उदाहरण –
तमाल छंद
मीठी वाणी जिसकी सुनते आप |
उसके घर यश की लग जाती छाप ||
कटुु वचनों से जो उच्चारें गान |
अपयश उसके घर में आया जान ||
ह्रदय हीन नर पत्थर माने लोग |
दया छोड़ कटुता का जाने रोग ||
नहीं समझते क्या होता ईमान |
दूर रहें सब करें नही पहचान ||
जुता बैल -सा मानव घूमें रोज |
राग द्वेष की करनी लेता खोज ||
छल छंदो की पढ़े कहानी खूब |
मीठे फल तज खाता रहता दूब ||
जिनकी कथनी करनी रहती भिन्न |
देखा उनको रहते हरदम खिन्न ||
नहीं मानते कभी किसी की बात |
घाते करने लगे रहे दिन रात ||
छेद करे जो पत्तल में ही आन |
शत्रु अकल का पूरा उसको मान ||
दूजो की जो छीना करता मोज |
अपना घायल करता है वह ओज ||
रोते रहते जीवन भर जो लोग |
स्थाई डेरा डाले रहता रोग ||
बेईमानी का करते जो गान |
उनके घर में रहता है शैतान ||
रहती खुद बेचैनी उनको यार |
आती खोटी बातें जिनको रार ||
देते रहते जो सबको ही घात |
रहती उनकी हरदम काली रात ||
कहता सच वह प्यारा होता यार |
पाता रहता सबकी नजरों प्यार ||
जिसके मन में रहता निश्छल प्रेम |
उसकी देखी सदा कुशलता क्षेम ||
सुभाष सिंघई
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तमाल छंद मुक्तक ~
देखी चम्पा की फुलवारी शान |
भँवरा उसका करे नहीं सम्मान |
मधुप न रहता जिसके घट में खास ~
जग में उससे कौन करे पहचान |
लोभी का धन कपटी लेता मार |
देता उसको मौके पर ही खार |
धन पर जो भी नर करते है मान ~
उनको धन ही करता तब बेकार |
सुभाष सिंघई
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गीत , आधार – तमाल छन्द
गुरुवर के चरणों को समझो आज | (मुखड़ा )
चरण सरोवर पूरण करते काज || ( टेक)
गुरुवर के अनुपम ही होते हाथ | (अंतरा )
सदा शिष्य को अपना देते साथ ||
समझे गुरुवर को जो चारों धाम.|
उसको जीवन में मिल जाते राम ||
गुरुवर जीवन में जानो गिरिराज |( पूरक)
चरण सरोवर पूरण करते काज || ( टेक)
हर पथ पर. गुरुवर होते है भान | (अंतरा)
गुरु होते अपने कौशल की शान ||
गुरु का जो कहलाता है परिवार |
उसमें हम सब होते है तैयार ||
गुरुवर जीवन को देते आगाज | ( पूरक)
चरण सरोवर पूरण करते काज ||( टेक)
गुरुवर मानो जीवन में सौगात |अंतरा
दिन में दिनकर शशि होते है रात ||
अमरत होता उनका बाँटा नेह |
शिक्षा मंदिर जैसा उनका गेह ||
सदा सत्य की गुरु होते आबाज |पूरक
चरण सरोवर पूरण करते काज ||टेक
सुभाष सिंघई
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गीतिका अपदान्त. ~आधार छन्द. तमाल
द्वार हृदय का अपना सुंदर खोल |
मुख से बोलो वाणी कुछ अनमोल ||
कितने दिन का पा़या है संसार ,
पता नहीं कब कितना बाजे ढोल |
आज सभी बन सकते अपने मीत ,
मीठे रखिए मुख से निकले बोल |
इधर -उधर हम. रहे भटकते खूब ,
सोना पाकर रेती को मत तोल |
चिंतन. रहता जिस आंगन का फूल ,
सच में जानो वहाँ न कोई झोल |
सुभाष सिंघई √
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तमाल छंद अपदांत गीतिका ~
सुखी नहीं ज्ञानी का सुनकर ज्ञान |
मानव. रहता अब हरदम हैरान ||
रोग शोक का यह संसारा यार ,
जुते बैल सी बना रखी पहचान |
तृष्णा माया का जयकारा रोज ,
है हैरानी करते उसका गान ||
अपनी धुन में अब नर मानें रार ,
भटका भूला धूलि रहा है छान |
जो नर मूरख को समझाता खूब |
वह खुद मूरख बन जाता श्रीमान ||
सुभाष सिंघई जतारा ( टीकमगढ़) म० प्र०
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आलेख ~ #सुभाष_सिंघई , एम. ए. हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र , निवासी जतारा ( टीकमगढ़ ) म० प्र०