तब भी चोरी कीजिए, ….
(१)
चोरी यद्यपि पाप है चोरी है अपराध.
तब भी चोरी कीजिए, ऑफीसर को साध..
ऑफीसर को साध, जुगाड़ी युक्ति लगाएं.
जा सत्ता के द्वार, फूल-फल भेंट चढ़ाएं.
बड़ा लीजिये कर्ज, चुकाना नहीं जरूरी.
जाएँ भाग विदेश, कारगर होगी चोरी..
(२)
कुण्डलिया में मन बसे, हृदय श्याम का धाम.
कविता सच्ची है वही, जिसमें हों घनश्याम.
जिसमें हों घनश्याम. हृदय वह हम सब धारें.
चक्र धरे जो रूप, दृश्य हम नित्य विचारें.
भक्ति प्रेम रस धार, बहाता मन यह छलिया.
धरें वीर का वेश, करे प्रेरित कुण्डलिया..
रचनाकार:–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’