तब तुम लौट आना पिय
मन जब जब तुझको पुकारे
तब तुम लौट आना पिय—–
फूलों से लद जाये उपवन,
भ्रमर सब गुन गुनगायें।
सुगंध बहकाये तन मन,
तब तुम लौट आना पिय।।
अम्बर में भर जाये गर्जन,
तटनिया हिचकोले खाये।
धरा करे जब नवसृजन,
तब तुम लौट आना पिय।।
विभावरी ओड़े सितारें जड़ी,
चकोर को यूँ शशि बुलाये।
आसमां निहारती ठिठुरी खड़ी,
तब तुम लौट आना पिय।।
खुशियों से भर जाये चितवन,
हरपल नयन दर्पण दिखलाये।
भरने व्याकुल खाली अयन,
तब तुम लौट आना पिय।।
हर बार जीती पिय तुम हारे,
अब तुम जीते मै हारी हिय।
मन जब जब तुझ को पुकारे,
तब तुम लौट आना पिय।।
(रचनाकार-डॉ शिव’लहरी’)