तब कहो सहगामिनी क्या
मुश्किलों से जो कभी मन
हार थककर बैठ जाए
तब कहो सहगामिनी क्या
साथ मेरा दे सकोगी ?
हाँ मुझे स्वीकार निर्मल, नेह का बंधन तुम्हारा
और तुम पर है समर्पण, प्रेयसी जीवन हमारा
किन्तु क्या तुम भी हमारे, प्रश्न का उत्तर बनोगी
जिन्दगी में साथ मिलकर,आप सुख दुख को सहोगी
जब हमारी जिंदगी की
हर घड़ी प्रतिकूल होगी
तब कहो सहगामिनी क्या
साथ मेरा दे सकोगी ?
सत्यपथ पर यदि कभी भी, पैर मेरे डगमगाएं
और मेरी हार पर जब, लोग खुलकर मुस्कराएं
जब हृदय आशा हमारी टूटकर के हो बिखरती
और आँखों से हमारी, अश्रुधारा हो छलकती
घोर पीड़ा में कभी जो
एक बन जाऊँ वियोगी
तब कहो सहगामिनी क्या
साथ मेरा दे सकोगी ?
जब हमारा भाग्य भी, दुर्भाग्य बनकर फूट जाए
साथ अपनो से हमेशा, के लिए जब छूट जाए
जब हमारी मंजिलों पर, मुश्किलें पहरा लगाएं
और यादें जब किसी की, रात भर हमको रुलाएं
जब मधुर मनुहार में
पड़कर बने हम प्रेम रोगी
तब कहो सहगामिनी क्या
साथ मेरा दे सकोगी ?
अभिनव मिश्र अदम्य
शाहजहाँपुर