तपकर स्वर्ण निखरता है।
संघर्षों से घबराकर राही क्यों राह बदलता है,
नित संघर्षों से जीवन का अनुभव बढ़ता है।
स्वर्ण समान बनता जीवन जितना ही तपता है।
सुना है आग में तपकर ही स्वर्ण दमकता है।
मनुज जीवन में जितनी असफलता पाएगा,
हर हार पर खुद में हर बार निखार आएगा।
हार पर तुझको फिर से संभालना होगा,
पुनः फिर प्रयत्न के मार्ग पर चलना होगा।
कोशिश तू जग में जितनी करता जाएगा,
कोशिश का अंजाम निखर कर आएगा।
संघर्षों की अग्नि में निरंतर तपना पड़ता है
सुना है आग में ही तपकर स्वर्ण दमकता है।
जिस दिन सोना बनकर तू चमकेगा,
हर कोई मिसाले सबको फिर तेरी देगा।
मत भूलो राही मेहनत से भाग्य बदलता है,
सुना है आग में तपकर ही स्वर्ण दमकता है।
स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश