तन्हा….
तन्हा….
बहुत डरता हूँ
हर आने वाली
सहर से
शायद इसलिए कि
शाम ने
सौंपी थी जो रात
मेरे ख़्वाबों को
जीने के लिए
खो जाएगी वो
सहर के पैरहन में
हमेशा के लिए
और मैं
रह जाऊंगा
सहर की शरर से
छलनी हुए
ख्वाबों के साथ
तन्हा
सुशील सरना
तन्हा….
बहुत डरता हूँ
हर आने वाली
सहर से
शायद इसलिए कि
शाम ने
सौंपी थी जो रात
मेरे ख़्वाबों को
जीने के लिए
खो जाएगी वो
सहर के पैरहन में
हमेशा के लिए
और मैं
रह जाऊंगा
सहर की शरर से
छलनी हुए
ख्वाबों के साथ
तन्हा
सुशील सरना