तन्हाँ महफिल को सजाऊँ कैसे
तन्हाँ महफिल को सजाऊँ कैसे
चले गए जो जहाँ से बुलाऊँ कैसे
फरियाद कौन सुनता है यहाँ
दुआओं में अब असर है कहाँ
खुदा ही रूठा मेरा मनाऊँ कैसे
तन्हाँ महफिल को सजाऊँ कैसे
मोहब्बत तो एक फसाना है
जिंदगी का नाम ही तराना है
साज-ए-दिल टूटा बजाऊँ कैसे
तन्हाँ महफिल को सजाऊँ कैसे
कोई उलझा है यूँ सवालों में
कोई खोया है बस खयालों में
राह किसी को मैं दिखाऊँ कैसे
तन्हाँ महफिल को सजाऊँ कैसे
हर कोई परेशान दिखता है
‘विनोद’कुछ हैरान दिखता है
अब हाल-ए-दिल सुनाऊँ कैसे
तन्हाँ महफिल को सजाऊँ कैसे
स्वरचित :——
( विनोद चौहान )