तन्मय
तन्मय अगर हो जाओ तुम
फिर क्या नहीं कर सकते हो।
और कुछ नहीं करना तुम्हें
बस लक्ष्य निर्धारित करो।
हो अथाह दृढ़ निश्चय मन
और अथाह साहस भरा।
देखलो फिर तुम स्वयं ही
बहुत कुछ कर सकते हो।
बस एक ही उद्देश्य हो
उस पर ध्यान केंद्रित करो
अंतर्मन उद्देश्य भरा हो
और तन भरी हो स्फूर्ति
फिर कौन कहे तुम अपने
लक्ष्य नहीं पहुंच सकते हो।
एक द्वार बंद हो जाता है
तो कई द्वार खुल जाते हैं
उत्साह भरा हो मन में तो
फिर बंद द्वार खुल जाते हैं
फिर कितनी बड़ी बाधा हो
पल भर में ही लांग सकते हो।
बस तल्लीन होकर ध्यान
अपने लक्ष्य पर केंद्रित करो
अर्जुन सम लक्ष्य चिड़िया पर
होकर तन्मय लक्ष्य साधो
इस तन्मयता के बल पर ही
तुम निश्चित लक्ष्य भेद सकते हो।
तन्मय अगर हो जाओ तुम
फिर क्या नहीं कर सकते हो।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’