धर्मांध
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
भारी पहाड़ सा बोझ कुछ हल्का हो जाए
हवस अपनी इंतहा पार कर गई ,
साँस-साँस में घुला जहर है।
होने को अब जीवन की है शाम।
नव भारत निर्माण करो
Anamika Tiwari 'annpurna '
उफ़ ये गहराइयों के अंदर भी,
मरूधर रौ माळी
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
*** सिमटती जिंदगी और बिखरता पल...! ***
23/103.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जाने वो कौन सी रोटी है
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
आज कल परिवार में छोटी छोटी बातों को अपने भ्रतिक बुद्धि और अ