तड़पन
तड़पन (वीर रस)
जिसके बिन तड़पत पागल मन,उसको करता सदा प्रणाम।
स्मृतियों से ही पूर्ण मनोरथ,बन जाएंगे सारे काम।
नहीं भूलना है स्वभाव सुन,यादों में है सदा बहार।
अमृत सागर की लहरें से,जुड़ा हुआ है दिल का तार।
सपनों में तुम मिल जाते हो,सदा दिखाते मोहक नृत्य।
देख देख मन कभी न भरता,तेरा खेल मनोरम स्तुत्य।
बहुत रसीला रूप भव्य है,देवकली सा मधुर स्वभाव।
जब तक दीखते स्वप्न लोक में,छोड़ा करते प्रेम प्रभाव।
नहीं तुम्हारे जैसा कोई,तुम्हीं मनोहर राज बसंत।
तुम प्रयाग की गोधूली में,संगम के घाटों का संत।
पागल दिल मूर्च्छित हो जाता,इसको जाते जब तुम भूल।
याद तुम्हारी जब अंतस में,गमका करते बनकर फूल।
सतत दृष्टि के मधु प्रांगण में,सदा दीखते बनकर छांव।
बने हुए हो प्राण पखेरू,रखना हरदम हृद में पांव।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।