तख्ता पलटा सूरज का( गीत)
तख्ता पलटा सूरज का( गीत)
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तख्ता पलटा सूरज का
सावन ने घात लगाकर
(1)
तूती बोल रही थी
सूरज मनमानी करता था,
पारा पूरे जेठ माह भर
ऊपर ही चढ़ता था
सत्ता बदली नभ की
सावन ने बूंदे बरसाकर
(2)
घिरा हुआ मेघों से अब नभ
दिन में कालापन है,
गई दुपहरी तपती
शीतलता से हर्षित मन है
नाच रही है धरती हॅंसकर
बादल-बारिश पाकर
तख्ता पलटा सूरज का
सावन ने घात लगाकर
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रचयिता ः रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451