ढूँढ़ रहे शमशान यहाँ, मृतदेह पड़ा भरपूर मुरारी
ढूँढ़ रहे शमशान यहाँ, मृतदेह पड़ा भरपूर मुरारी।
स्वर्ग सिधार गयी करुणा, अब व्यस्त सभी निज में नर-नारी।
आफत देख सुयोग लखे, मन से मनु हीन हुआ कुविचारी।
नात सखा सब दूर हुए, बस लाभ हि लाभ लखे अतिचारी।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’