!!!!!! ढूँढते हैं !!!!!!!
क्या कयामत आई है दिल-ए दीवाना
तुझे ही ढूँढते हैं कचहरी-ताडीखाना
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हो कहीं तू मिल जा मुझे
लिये फिरता है तेरा शौक मुझे
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खुद की गिरेवां में झांक न सका
खुद को कभी पहचाँ न सका
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करिश्मा भी खुदा, अजीब है यहाँ
खुद को मसीहा सब समझते हैं यहाँ
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छल है कपट है द्वेश दरिद्र है
दिखावा हैं करते मानते पवित्र हैं
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तुम ही ईश हो तुम ही मसीह हो
मत ढूँढो उसे तुम क्यों भयभीत हो
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मानते हैं सब जानते भी सभी हैं
आदत है मजबूर , ढूँढते भी सभी हैं
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———————————–बृज