ढिल्ल
वो जनाब थोड़े ढिल्ल लगते हैं ,अर्द्ध पागल बस शौकिया हैं क्या।
कोसने की परम्परा के जनक हैं,उन्हें आदमी-ए-फोबिया है क्या।
दिमाग की नसें उनकी करती हैं अठखेलियाँ हरदम,
उन्हें शांत रखने को साजो सामान में ,बर्फ-ए-तौलिया है क्या।
-सिद्धार्थ पाण्डेय