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1 Apr 2020 · 7 min read

ढाई घंटे की नौकरी

वह एक कम पढ़े-लिखे, गरीब पिता की संतान था । 12वीं अच्छे अंको से पास कर ली थी। गर्मियों की छुट्टियां चल रही थी। उसने सोचा कि चलो कहीं थोड़ा बहुत काम धंधा करके कमा लिया जाए । पिताजी व घर की थोड़ी-सी सहायता हो जाएगी और कुछ सीखने को भी मिलेगा।

पर क्या नौकरी मिलना इतना आसान है आज ?

उसके पिताजी ने काफी जगह पता किया, तब कहीं जाकर एक छोटी-सी नौकरी की बात बनी। उसे एक दुकान में काम करना था। दुकान में किराना के सामान के अतिरिक्त, दवाइयां भी थीं। साथ ही मालिक ने कोल्ड ड्रिंक्स की एजेंसी भी ले रखी थी। एक बड़ी-सी दुकान में छोटी-छोटी दो-तीन दुकानें थी ।

बड़ी ही सिफारिश से मिली इस नौकरी के लिए आरित को सुबह आठ बजे वाली बस से प्रतिदिन पंद्रह किलोमीटर जाना और शाम को आठ बजे वाली बस से वापस आना था। पहला दिन , पहला दिन क्या..पहला घंटा.. पहला घंटा क्या…पहले ही मिनट में बताया गया कि भई दुकान में रखे डिब्बों पर कपड़ा मार दो । ना कोई परिचय, ना कोई बात, ना दुकान के कायदे-कानून ही समझाए गए और ना ही काम के घंटे व वेतन निर्धारित किया गया।

आरित कपड़ा मारने लगा। अच्छे तरीके से डिब्बों की सफाई करने लगा। दुकान में अन्य तीन लड़के और भी काम करते थे और उन्होंने बताया कि हमने पहले ही कपड़ा मार दिया है। फिर भी मालिक ने कहा तो नौकर को काम तो करना ही पड़ेगा।

आरित अपने काम में होशियार था । मेहनती था। ऊपर से पहली नौकरी का जोश । पांच ही मिनट में एकदम चमकाकर बैठ गया ।

मालिक ने देखा।

मालिक ने तुरंत नया काम बताया। कहा, “वह हथौड़ा लो और गुड़ की बड़ी डलियों को फोड़कर छोटा कर दो।” नयी नौकरी । जोश । कुछ ही मिनट । काम खत्म।

मालिक अपने नौकर को बैठे हुए कैसे देखे ?

कोई भी मालिक अपने नौकर को बैठे हुए पैसे कैसे दे दे ? नौकर को बैठे हुए देखकर मालिक ने अगला काम बताया, “काम खत्म हो गया तो बैठे क्यों हो ? जाओ गोदाम में कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें रखवा आओ।” आरित गया । नयी नौकरी । जोश । कुछ मिनट। काम खत्म। आया। बैठ गया। मालिक परेशान ।

यद्यपि दुकान के अन्य लड़कों ने बताया कि यहाँ हर काम तब तक करते रहो, जब तक मालिक ही न बुला ले। काम खत्म होने से मतलब नहीं, काम करते हुए दिखना चाहिए। पर आरित को अपना काम ईमानदारी से करने से मतलब था । उसने उन लड़कों से कहा, “ईमानदारी और मेहनत से अपना काम करना चाहिए।”

मालिक आए और उन्होंने कहा,” काफी दिनों से शोकेस के ऊपर पेंट चिपका हुआ है। इसे साफ कर। ”

आरित ने तुरंत सफाई शुरू कर दी। पर कपड़े व पानी से साफ नहीं हुआ तो मालिक ने एक नौकर को केरोसिन तेल लाने भेजा । केरोसिन तेल आने पर आरित साफ करने लगा लेकिन मालिक ने कपड़ा लिया और खुद ही साफ करने लगा। आरित हैरान। पर बाद में पता चला कि मालिक ने पूरा कपड़ा तेल में तर कर दिया ताकि लड़का साफ करते-करते तेल में सन जाए और हुआ भी वैसा ही। परंतु नई नौकरी । जोश । काम में फुर्ती और काम खत्म।

हाथ धोकर बैठ गया आरित।

मालिक अपने उन दो तीन दुकानों में से एक में गया नया काम देखने इतनी देर में एक औरत ने एक बिस्कुट का पैकेट तथा साबुन मांगा आरित ने दे दिए और पैसे गल्ले में रख दिए। मालिक आया। पूछा । पता चला । गुस्सा हुआ। कहा, “खबरदार जो आगे से किसी को भी सामान दिया और गल्ले को हाथ लगाया तो। ”

आरित बेचारा अचंभित और उदास भी। मालिक गुस्सा।

तभी एक और ग्राहक आया। बोला,”मुझे दो पेप्सी के कार्टन चाहिए।”

मालिक ने पैसे लिए और कहा, “आप जाइए मैं अभी भिजवाता हूँ (आरित की तरफ इशारा करते हुए) इसके हाथ।” ग्राहक ने कहा, “यहीं पास ही है। मैं साइकिल लाया हूँ। मैं ही ले जाता हूँ।”

मालिक ने आरित को धक्का-सा दिया कि जा रखवाकर आ। परंतु वह ग्राहक अपनी साइकिल पर रखकर चल पड़ा और कहा दो ही तो हैं। ले जाऊँगा।

तभी एक अन्य दुकानदार का फोन आया। उसने चार कार्टन कोल्ड ड्रिंक्स के मंगवाए। मालिक ने आरित को भेजा साइकिल पर कार्टन रखकर। पहले कभी साइकिल पर या वैसे आरित कार्टन लेकर नहीं गया था। बड़ा परेशान हुआ। पर पहुंचा दिया। मालिक ने फोन करके अगले दुकानदार को इसी लड़के के हाथों तीन खाली कार्टन लाने को भी कहा । आरित वापस कार्टन लेकर आया । आकर बैठ गया। मालिक फिर परेशान।

मालिक ने उसे अपनी दवाइयों की दुकान में कुछ सामान ऊपर चढ़ाने के लिए कहा । लड़का जोश में। पहली नौकरी। पांच मिनट। काम खत्म। आरित फिर आकर बैठ गया । मालिक फिर परेशान ।

मालिक ने नया काम शायद पहले से ही सोच रखा था। शोकेस के नीचे की सफाई । पर यह काम भी खत्म । तराजू की फिर से सफाई । डिब्बों को इधर से उधर, उधर से इधर, बोरों को यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ, एक बार फिर से फर्श पर झाड़ू लगाना, कपड़े से दीवार की सफाई आदि के फालतू के काम करवाकर जब मालिक के पास कोई ढंग का काम नहीं बचा तो उसने एक बेतुका काम लड़के से करवाया । और उस काम का अंजाम क्या हुआ ?

मालिक जिन कागजों पर अपने हिसाब करता था(छोटे जोड़)। उन कागजों को छोटे-छोटे टुकड़ों में फाड़ा। जिस तरह खेत में यूरिया खाद डालते हैं, वैसे ही नीचे दुकान के सामने सड़क पर बिखरा दिए(वो सब देख रहा था)। उसको बुलाया और कहा, “झाड़ू ले। इनको साफ कर और कूड़ेदान में फेंक दे।”

आपके संस्कार, आपके शिष्टाचार, आपकी विनम्रता एक तरफ है, किंतु यदि ये एक सीमा से अधिक हो जाते हैं तो वर्तमान दुनिया इन्हें कायरता की श्रेणी में गिनती है और आपको एक कमज़ोर व्यक्ति सिद्ध कर देती है। ऐसी परिस्थितियों में हमें वही करना चाहिए जो भगवान राम ने समुद्र से रास्ता मांगते समय किया और भगवान श्रीकृष्ण ने कौरवों की सभा में किया।

उसने सेठजी से पूछा, “साहब यह तो आप मुझे दे देते । मैं पहले ही कूड़ेदान में फेंक देता । आपने आगे बिखरा दिए । अभी इनको झाड़ू लगानी होगी। अपना समय बच सकता था। ”

सेठजी ने कहा,”जा, जितना बताया, उतना कर।” आरित को अजीब-सा लगा।

उसने एकाएक पूछ लिया, “साहब मेरी तनख्वाह कितनी होगी ?”

सेठजी ने बेरुखी से कहा, “कैसी तनख्वाह ?”

“साहब काम के बदले में कुछ तो देंगे। महीने में” । ”

तेरे बाप से बात हो गई । उसी को देंगे ।”

” काम तो मैं कर रहा हूँ। पता तो चले इतने काम की महीनेभर में तनख्वाह क्या मिलती है ?”

” कुछ नहीं मिलेगी।”

” तो मुझे काम भी नहीं करना।”

मालिक ने ज़ोर से आवाज़ लगाकर अपने पिता से कहा, जो पास ही अंदर दुकान में थे कि ये लड़का कुछ बात करना चाहता है ।

‘अच्छा तो यहाँ एक और बड़े सेठजी हैं।’

उन्होंने अंदर बुलाया। वहाँ जाकर आरित ने वही पूछा । मालिक के पिता इस मामले में भी मालिक के पिता ही निकले। उनका जवाब मालिक से भी बुरा था । पहले तो कहा तनख्वाह नहीं मिलेगी। फिर कहा हम तो फ्री में काम करवाएंगे। जब आरित ने ज़ोर देकर पूछा तो मालिक ने कहा एक हज़ार रुपये महीना देंगे । वहां तक आने जाने का किराया ही चार सौ पचास रुपये हो जाता था और दोपहर का भोजन भी अगर मिलाया जाए तो सब कुछ वही खर्च हो जाएगा।

आरित ऐसे व्यवहार से बहुत दुखी हुआ ।

उसे लगा कि अगर मैं योग्य हूँ तो मैं कुछ अच्छा कर लूँगा और अगर यहीं दबा-कुचला रह गया तो मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगा । ये लोग मुझे लगातार दबाते रहेंगे । अब उसके सामने दो रास्ते थे। एक तो चुपचाप सहन करते हुए वहीं पड़ा रहता और दूसरा कुछ अच्छा, कुछ अलग, कुछ विशेष, कुछ बड़ा करने की तरफ कदम बढ़ा देता ।

हम सबके जीवन में ऐसा धर्मसंकट कम-से-कम एक बार ज़रूर आता है।

उसने दृढ़ता के साथ बड़े मालिक से कहा कि देखिए साहब या तो आप मुझे सही जवाब दीजिए या तो फिर मुझे जाना होगा ।

बड़े मालिक ने कहा, “एक बार जाना था, वहाँ सौ बार जा। कोई रोकने वाला नहीं है। हम तो ₹1000 महीना देंगे और तेरे पापा से बात हो चुकी है। देंगे तो देंगे, नहीं देंगे तो नहीं देंगे” आरित ने गंभीरतापूर्वक कहा,”ठीक है, आप संतुष्टि के योग्य उत्तर नहीं दे रहे हैं। अब मैं यहाँ नहीं रुक सकता। जाता हूँ। आखिरी राम-राम। ”

वह बस स्टॉप पर आ गया। उसके गांव जाने वाली बस 11:30 बजे आती थी । बस आ गई। बस में बैठा-बैठा सोच रहा था। हो गई नौकरी । हो गई घर वालों की सहायता। एक बेबस-लाचार बालक तिरस्कार सहकर, अपमानित होकर चुपचाप अपने घर की ओर जा रहा था।

पता नहीं ऐसे कितने ही आरितों का प्रतिदिन शोषण हो रहा है । हर रोज, हर पल, हर कदम अपमान-तिरस्कार हो रहा है । यही बातें सोचते वह अपने घर की तरफ बढ़ रहा था । सूरज अपनी रोशनी को आग में परिवर्तित करने को उतावला हो रहा था। यह थी उसकी पहली नौकरी, ढाई घंटे की नौकरी।
–घनश्याम शर्मा

Language: Hindi
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