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15 Feb 2024 · 1 min read

” ढले न यह मुस्कान “

कबीर / सरसी छंद
मात्रा भार – 16:11

गीत

भले उमरिया ढलती जाये ,
ढले न यह मुस्कान !
यादें अपनी शहनाई सी ,
छेड़े है नित तान !

हैं पड़ाव बहुतेरे देखे ,
थमे नहीं यह पाँव !
बंजारिन आशा के डेरे ,
रहे ढूंढते ठाँव !
रहे हौंसले दृढ़ अपने तो ,
कभी मिले हैं गान !!

ख़ुशियाँ साझा की हमने तो ,
पाये गम सौगात !
उजियारे दिन कहाँ भाग में ,
है निर्जन सी रात !
अपने और पराये क्या हैं ,
आज हुआ है भान !!

मोरपंख तो है प्रतीक बस ,
बैठे सुध बुध हार !
राह सुलभ हो आगे की अब ,
वो ही खेवनहार
जाने कब अवसान देह का ,
किसको है यह भान !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 252 Views
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