” ढले न यह मुस्कान “
कबीर / सरसी छंद
मात्रा भार – 16:11
गीत
भले उमरिया ढलती जाये ,
ढले न यह मुस्कान !
यादें अपनी शहनाई सी ,
छेड़े है नित तान !
हैं पड़ाव बहुतेरे देखे ,
थमे नहीं यह पाँव !
बंजारिन आशा के डेरे ,
रहे ढूंढते ठाँव !
रहे हौंसले दृढ़ अपने तो ,
कभी मिले हैं गान !!
ख़ुशियाँ साझा की हमने तो ,
पाये गम सौगात !
उजियारे दिन कहाँ भाग में ,
है निर्जन सी रात !
अपने और पराये क्या हैं ,
आज हुआ है भान !!
मोरपंख तो है प्रतीक बस ,
बैठे सुध बुध हार !
राह सुलभ हो आगे की अब ,
वो ही खेवनहार
जाने कब अवसान देह का ,
किसको है यह भान !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )