डॉ Arun Kumar शास्त्री – एक अबोध बालक
डॉ Arun Kumar शास्त्री – एक अबोध बालक
शीर्षक – हर चेहरा – रंगीन मुखोंटा
लेखक – डॉ अरुण कुमार शास्त्री – दिल्ली
परिस्थितियों के मोहताज़ नहीं – ये इंसानी मुखोंटे ।
झपट पड़ते हैं नारी जिस्म नोचनें को
परिस्थितियों के मोहताज़ नहीं,
ये इंसानी मुखोंटे ।
झपट पड़ते हैं नारी जिस्म नोचनें को,
जब भी मिलते मौके ।
इन दो शब्दों में छुपी एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है।
यह एक ऐसी दुनिया है जहां,
महिलाओं के लिए हर पुरुष एक आतताई है ।
ऐसा नहीं हर कोई वही करने के लिए तैयार हैं
लेकिन अधिकांश, मन से
उनके शरीर को नोचने के लिए तैयार हैं,
आत्मसम्मान तो उनका घर बाहर टूटता ही है
कार्यस्थल पर , सड़क पर जिसकी आशंका होती मगर अधिक ।
पशु वत प्रवृतिया कही जाती ये इंसानी आदतें ।
इनसे मुँह मोड़ने को तैयार मगर रहते हैं कुछ एक ही ।
परिस्थितियों के मोहताज़ नहीं,
ये इंसानी मुखोंट ।
झपट पड़ते हैं नारी जिस्म नोचनें को,
जब भी मिलते मौके ।
इन दो शब्दों में छुपी एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है।
यह एक ऐसी दुनिया है जहां,
महिलाओं के लिए हर पुरुष एक आतताई है ।
ऐसा नहीं हर कोई वही करने के लिए तैयार हैं ।
महिलाएं अपने जीवन में बचपन से ही ,
कई चुनौतियों का सामना करती हैं,
बच्ची हो या युवा पुरुषों की निगाह से कोई नहीं बचती हैं ।
लेकिन उन्हें कभी हार नहीं माननी चाहिए ।
उन्हें अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए तैयार रहना चाहिए,
अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए।
ये जीवन ईश्वर की देंन है , उसका सम्मान करना चाहिए ।
परिस्थितियों के मोहताज़ नहीं,
ये इंसानी मुखोंटे,
झपट पड़ते हैं नारी जिस्म नोचनें को,
जब भी मिलते मौके ।
इन दो शब्दों में छुपी एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है।
महिलाएं अपने जीवन में हर कदम आगे बढ़ने के लिए तैयार रहें,
और अपने सपनों को पूरा करने के लिए तैयार रहें,
हार तो उन्हें माननी ही नहीं चाहिए,
अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए तैयार रहना चाहिए।